देखो कितने थे भवर पड़े मजधार
लगा अब तो न बचेंगे हम इस बार
कैसे फिर पहुंची ये नय्या उस पार
लीला है तुम्हारी, तुम्ही को आभार
देखो कितने थे भरे मेरे अंदर विकार
छुपते थे खुद से और चुभता था संसार
कैसे फिर तोड़ी बेड़िया खुद को मार
लीला है तुम्हारी, तुम्ही को आभार
देखो कितना था जीवन मेरा निराधार
प्रेम हीन हृदय और खोखला अहंकार
कैसे फिर निर्मल चेतना से जगा ये बीमार
लीला है तुम्हारी, तुम्ही को आभार
देखो कितने मूरछित जीव पड़े है लाचार
सबको आज्ञान से है करना बस व्यापार
कैसे तुमने अपने प्रेम से किया घट उजियार
लीला है तुम्हारी, तुम्ही को आभार

