छोटी छोटी खुशियों के दीपक से
सजता जो हर आँगन मन का
पुलकित होती हर स्वांस
जो जीवन होता बिना मुखौटो का
हल्के हल्के आनंद कि शांति से
सजता जो हर मंदिर मन का
सुंदर होता हर कोई यहाँ
जो जीवन होता बिना मुखौटो का
कठोर से कठोर वक़्त की क्रीड़ा से
सजता जो अंग प्रत्यंग इस मन का
स्वयं को धोखा न देता कोई
जो जीवन होता बिना मुखौटो का
भोगने और भुगवाने की पीड़ा से
मुक्त रहता मन,जल जाती फिर अहंता
दिखावे के दाँतो का क्या काम
जो जीवन होता बिना मुखौटो का
