बिना उस सुर के
क्या ये संगीत कर्णप्रिय है
बहकते हिलोरो के पीछे
व्यर्थ जीवन का तुम्हारे शोर है
बिना उस दीपक के
क्या ये घर प्रजवलित है
झूठे रिश्तो वादों के पीछे
लुटती चेतना के तुम्हारे रोग है
बिना उस एक के
क्या ये अनेक सार्थक है
बिखरते लम्हों के पीछे
भ्रम से टूटी तुम्हारी डोर है
प्रेमपूर्ण उस हृदय से
सुगन्धित जीवन की कैसी सुगंध है
अन्यथा इन लिबासो के पीछे बस
बोलती हुई लाशों की दुरगंध है
