झलक दिख जाती है तब
जब डूबने से बच कर
ऊपर आता है कोई
अन्यथा नीचे तो बस लाशें है
जीवित तो कोई नहीं
स्मरण आ जाता है तब
जब नींद को दूर कर
ऊपर आता है कोई
अन्यथा नीचे तो बस स्वप्न है
जागृत तो कोई नहीं
कुचक्र टूट जाता है तब
जब हवाओ को चीरकर
ऊपर आता है कोई
अन्यथा नीचे तो सभी लाचार है
पुरुष तो कोई नहीं
अर्थ मिल जाता है तब
जब चल चित्र में चलते हुए
घर पहुंच जाता है कोई
अन्यथा नीचे तो बस मेला है
बिकता है जहाँ हर कोइ
