प्रेम बांटने से है बढ़ता
रिश्ता फिर चाहे हो जैसा
संसर्ग जीवन का हो जाता है
प्रतिबिम्ब उसका दिख जाता है
कदम उठाने से राह है खुलती
अभी भले मंज़िल नहीं दिखती
अर्थ जीवन का बढ़ जाता है
प्रतिबिम्ब उसका दिख जाता है
आँख खोलने से अंधेरा है जाता
चाहे फिर कोई सहारा न रह जाता
आत्मबल जीवन को मिल जाता है
प्रतिबिम्ब उसका दिख जाता है
उसका प्रतिबिम्ब या अपना चहरा
इधर है प्राण उधर रेत का ढेरा
प्रेम से जीवन मुक्त हो जाता है
अस्तित्व का बोध हो जाता है

