चाहे सूरज की पहली किरण
या स्वेत बादलो की छटा बनकर
चाहे तारो की सजाओ सेज
और आ जाओ तुम चाँद बनकर
आओ देखो सड़ कर मर रहा इंसान
अज्ञान की संकुचित गलियों में गलकर
चाहे दीपक की लौ बनकर
या सन्नाटे में हवा का झोखा बनकर
चाहे बच्चे को लगाओ मार
और आ जाओ तुम पिता बनकर
आओ देखो देखो सड़ कर मर रहा इंसान
अज्ञान की संकुचित गलियों में गलकर
मै चाहता हू बस की आओ
जिससे हर आँख में तुम्हारा तेज
बल बनकर बहे इन बाहुओ में
जिससे हर हृदय में तुम्हारा प्रेम
प्रेरणा बनकर बहे इन शब्दों में
जिससे हर कान में तुम्हारा संगीत
शांति बनकर बहे इस जीवन में
जिससे हर प्राण तुमसे पूर्ण होकर
खेले इस संसार रुपी आँगन में

